सही नहीं की कुछ चीज़े, डर कर इस जमाने में
सही नहीं की कुछ चीज़े, डर कर इस जमाने में,
पूरी उम्र निकल गई उन्ही, गलतियों की कीमत चुकाने में।
Labels: two line sayari
समाज में व्यक्ति जीवन प्रति जो धारणा बनाता है या धारणा करता है वही धर्म है। धर्म संस्कृत के ''धृ'' धातु से बना है जिसका अर्थ है जो धारण किया जाये। जब क्या धारण किया जाये स्पष्ट हो जाये तो वह धर्म बन जाता है। धर्म एक प्रकार से कर्यव्य के द्वारा कुछ समाजोपयोगी तथा आत्मोपयेगी बातों या गुणों को धारण करना कहा जा सकता है।
सही नहीं की कुछ चीज़े, डर कर इस जमाने में,
पूरी उम्र निकल गई उन्ही, गलतियों की कीमत चुकाने में।
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