ज़ख़्म ही देना था तो पूरा जिस्म तेरे हवाले था
ज़ख़्म ही देना था तो पूरा जिस्म
तेरे हवाले था मगर कमबख़्त तूने तो ,
हर वार दिल पर ही किया ..!!🥺
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समाज में व्यक्ति जीवन प्रति जो धारणा बनाता है या धारणा करता है वही धर्म है। धर्म संस्कृत के ''धृ'' धातु से बना है जिसका अर्थ है जो धारण किया जाये। जब क्या धारण किया जाये स्पष्ट हो जाये तो वह धर्म बन जाता है। धर्म एक प्रकार से कर्यव्य के द्वारा कुछ समाजोपयोगी तथा आत्मोपयेगी बातों या गुणों को धारण करना कहा जा सकता है।
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GOOD
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